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लेखनी प्रतियोगिता -06-Jan-2024

*वरना यूँ ही गुज़रते रहेंगे साल दर...*

ए बशर! कुछ तो अपनी तू रख खबर।
 वरना यूँ ही गुज़रते रहेंगे साल दर।।

क्यों दिल को संगमरमर सा बना डाला,
कि आँसू किसी के भी करते नहीं असर।

सही ग़लत का फ़र्क़ भी न कर सका तू,
 ये कैसी पट्टी बाँध ली है आँखों पर।

धूल जम गई है तेरी पलकों पर इतनी,
हर रिश्ते पर उंगली तू उठाता बशर।

वक़्त की आदत में ही नहीं है रुकना,
पल में बदल जाता है यहाँ सारा मंजर।

थामे रखना हाथ उस मेहरबाँ का,
जिसने किश्ती को डूबने न दिया अधर।

इश्क़ की नेमत मिले तो दामन भरना,
उम्र यूँ ही प्यार में कर लेना बसर।

साथ मिले प्यार का जो ज़िन्दगी में,
खूबसूरत ही लगता फिर हर सफ़र।

जीतेजी न छूटे कभी हाथ उसका,
जिसको ख़ुदा मानती है आज नज़र।

आ गया वो सनम यूँ मोहब्बत लेकर,
कि फूलों भरी सी लगती है राह-ए-गुज़र।

सुस्ता लेते हैं चंद घड़ी बैठकर आ,
मन के सहन में खड़ा है प्रीति -शज़र।

प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश

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9 Comments

Pranav kayande

09-Jan-2024 04:17 AM

great

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Gunjan Kamal

08-Jan-2024 08:12 PM

बहुत खूब

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Rupesh Kumar

07-Jan-2024 08:01 PM

Nice

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